• +919358251363
  • This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

श्री अक्रूरधाम, वृन्दावन


जब श्री अक्रूर जी महाराज भगवान श्री कृष्ण एवं भाई बलराम जी को लेकर राजा कंस के आग्रह पर, वृन्दावन से मथुरा की ओर ले जा रहे थे, तो मार्ग में विश्राम हेतु, यमुना के किनारे रथ रोक कर स्नान करने की इच्छा हुई।

श्री अक्रूर जी बहुत बडे़ ज्ञानी और दिव्य शक्ति के रखवाले थे, लेकिन कभी कभी उनके मन में यह शंका उठने लगी की क्या श्री कृष्ण जी दुराचारी कंस का वध कर पायेंगे या नहीं।

इसी शंका से वशीभूत होकर जब उनके मन के विचार उनके चेहरे पर चिन्ता के रूप मे दिखाई देने लगे तो प्रभु गोपीनाथ जी ने सोचा कि चाचा की शंकाओं का समाधान होना चाहिये। जैसे ही श्री अक्रूर जी ने यमुना में डूबकी लगाई तो उनको पानी में भगवान श्री कृष्ण एवं उनके भाई बलराम जी के दर्शन हुये। उन्होनें मस्तक को बाहर निकालकर देखा तो दोनों भाईयों को रथ में ही विराजमान पाया।

 

श्री अक्रूर जी ने दौबारा डूबकी लगाई और तब प्रभु ने अपने चतुभु‍र्ज रूप के दर्शन उनको कराये। इतिहास में यह शायद पहला अवसर था कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने इस विराट रूप के दर्शन किसी मानव को कराये या यह कहना सत्य होगा कि श्री अक्रूर जी महाराज ही एकमात्र मानव थे जिनको प्रभु के इस दिव्य रूप के दर्शन करने का पहला अवसर प्राप्त हुआ।

जिस स्थान पर श्री अक्रूर जी को दिव्य रूप के दर्शन प्राप्त हुये वहां पर एक घाट की स्थापना हुई जिसे ‘‘ श्री अक्रूर घाट’’ का नाम दिया गया और उसी स्थान पर एक धाम बनाने की योजना के अन्तर्गत एक मन्दिर की स्थापना श्री अक्रूर जी माहराज के वंशजों यानि बारहसैनी समाज ने की जो ‘श्री अक्रूर धाम’ के नाम से प्रसिद्ध है।

समय बीतता गया और श्री अक्रूर धाम की महिमा बढ़ने लगी। हजारों श्रद्धालु, प्रतिवर्ष मन्दिर में स्थापित प्रभु गोपीनाथ जी के दर्शनों को दूर दूर से आने लगे और उनके मन की इच्छाऐं पूरी होने लगी। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में हाथरस के सुप्रसिद्ध रईस बारहसैनी–वैश्यों के अग्रगण्य लाला दौलत राम जी ने भगवान गोपीनाथ जी की पूजा के स्वत्वाधिकारी गुसाई जी के आग्रह पर मन्दिर के नाम वहां की सौ बीघा से अधिक जमीन खरीदी और एक–दो मन्दिर का निर्माण कराकर प्राचीन मन्दिर से भगवान की मुक्ति को वर्तमान मन्दिर में लाकर स्थापना की।
(बारहसैनी, जूलाई/अगस्त 1941, पृष्ठ 22)

इसी प्राचीन मन्दिर के समीप एक पंचमुखी हनुमान जी का मन्दिर बना हुआ है जिसकी महिमा भी अपरम्पार है।
जिस दिन श्री अक्रूर जी महाराज ने प्रभु के दिव्य रूप के दर्शन किये, उसदिन सूर्यग्रहण का दिन था। इसी कारण सूर्यग्रहण के दिन अक्रूर धाम में प्रभु के दर्शन करना और यमुना नदी में गोता लगाने से एक तीर्थ धाम की परिक्रमा करने के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है ऐसा पुराणों में लिखा है और आज भी इसकी बड़ी मान्यता है। देश के विभिन्न प्रान्तों से जो भगवान श्री कृष्ण जी के दर्शनों को वृज क्षेत्र में आते है, उनकी पूजा तभी पूर्ण समझी जाती है जब अक्रूर धाम में जाकर प्रभु गोपीनाथ जी के दर्शन कर लेते है। श्री अक्रूर धाम में प्रभु के दर्शनों से मन की हर इच्छा पूर्ण होती है।

 

श्री अक्रूर धाम का जीर्णोद्वार

सन् 1925 में श्री वैश्य बारहसैनी महासभा सप्तम अधिवेशन छाता के अवसर पर महासभा में एक प्रस्ताव पारित हुआ कि श्री अक्रूर जी के मन्दिर का प्रबन्ध तथा उसके प्रत्येक कार्य हेतु निम्नलिखित सज्जनों की एक उपसभा बनाई जाये तथा वह उपसभा अपनी रिपोर्ट शीध्र महासभा को भेज दे, ताकि उसका उचित प्रबन्ध हो सके।
श्री मिश्री लाल जी वकील, अलीगढ़ इस उपसभा के संयोजक नियुक्त हुए,
बाबू पन्नालाल जी वकील कानून परमर्शदाता तथा अन्य गणमान्य सदस्य।
(बाहरसैनी, जनवरी, 1925)
तदुपरान्त 1946 में श्री दुर्गाप्रसाद गुप्त जी का लेख बारहसैनी पत्रिका फरवरी, 1941, पृष्ठ 13/14 में पढ़ने को मिला।
श्री दुर्गा प्रसाद जी ने एम0 एस0 सी0, एल0 टी0, एल0 एल0 बी0 होने के बाद भी समाज सेवा के हेतु एवं अपने परिवार के नजदीक रहने के विचार से वृन्दावन के छोटे से म्युनिसिपल स्कूल में हेडमास्टर का पद स्वीकार किया।
आपके लेख के कुछ अंश इस प्रकार है:–
‘‘महासभा की बैठक में यह आवश्यक समझा गया कि अक्रूर कमेटी को पुन: जागृत किया जाये और यदि उचित समझा जाए तो उसका पुनर्निर्माण किया जावे। महासभा की ओर से एक डेप्युटेशन बा0 किशोरी लाल जी और बाबू जय नारायण साहब का सेवासंघ के उद्देश्य को लेकर वहां आया। फलस्वरूप एक कमेटी मथुरा और वृन्दावन नगर के विरादरी भाईयों को निर्वाचित करके गठित की गयी।
.............................................
निम्न पदाधिकारी नियुक्त हुये :–
बा0 राधा वल्लभ, बी0एस0सी0, एल0एल0बी0, वकील, मथुरा – सभापति
बा0 हरी प्रपन्न, एम0ए0, एल0एल0बी0, वकील, मथुरा – उपसभापति
बा0 दुर्गाप्रसाद गुप्त, हेडमास्टर, वृन्दावन – मन्त्री
मा0 हर स्वरूप, हेडमास्टर, ब्रह्यकुन्ड स्कूल, वृन्दावन – उपमंत्री
ला0 प्यारेलाल, चक्की वाले, वृन्दावन– कोषाध्यक्ष

इनके साथ दो लेखा परीक्षक और सात सदस्य नियुक्त हुए।
उस समय तक श्री अक्रूर धाम में एक लम्बी कोठरी में दो मूर्तियां विराजमान थी और चारों तरफ बाउन्डरी या दीवार नही थी।
श्री दुर्गाप्रसाद जी एवं अन्य सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों का ख्याल था कि एक बड़ी योजना बनाकर सभा के सामने रखें जिससे समाज का एकमात्र तीर्थस्थान समाज तथा देश के अन्य सभी व्यक्तियों को आकर्षित कर सके।

सबसे बड़ी समस्या जो कमेटी के सामने थी वह थी भूमि के स्वामित्व की, केवल दो एकड़ जमीन महासभा के नाम हो सकी, समस्त भूमि गोस्वामियों के नाम या ठाकुर जी के नाम है जिसे गोस्वामी रजिस्ट्री करने में हिचक रहे थे।
बारहसैनी पत्रिका, मार्च 1986 में पढ़ने को इस प्रकार मिला :–
(बारहसैनी महासभा का वार्षिक विवरण 1986)

श्री अक्रूर मन्दिर का गत कई वर्षो से महासभा का ध्यान जीर्णोहार कर एक अक्रूर आश्रम बनाने की ओर आकर्षित हुआ है और उसकी अपील रजत जयन्ती अधिवेशन में भी की जा चुकी है। हमारे आदि देवता श्री अक्रूर भगवान के मन्दिर के पास जो 50 एकड भ