मंदिर-विग्रह दर्शन
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वार्ष्णेय वंश शिरोमणि श्री अक्रूर जी महाराज
श्री अक्रूर जी के पिता श्वफल्क के व्यापारिक सम्बन्ध दूर-दूर तक फैले थे। वे कुशल अर्थ प्रबन्धक थे। राज्य कर्म (क्षत्रिय कर्म) में उनकी अधिक रुचि न थी। काशी की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनाने में सहायता करने के कारण, वहॉं के राजा द्वारा अपनी पुत्री गान्दिनी का विवाह उनसे कर दिया गया। अक्रूर जी अपनी ननिहाल (काशी) जो सदैव से अध्ययन-अध्यापन अथवा ज्ञान का केन्द्र रही है, के प्रभाव के कारण स्वभाव से विद्वान एवं संत प्रवृत्ति के थे। साथ ही पिता श्वफल्क के व्यापारिक सम्बन्ध व कुशलता भी उनको विरासत में मिली थी। क्षत्रिय वर्णीय पितृ कुल में तो वे जन्मे ही थे। कंस जैसा प्रभावशाली परन्तु क्रूर शासक भी श्री अक्रूर जी के प्रभाव को स्वीकार करता था। जब कंस किसी भी प्रकार से श्रीकृष्ण को मथुरा न बुला सका तो अक्रूर जी के द्वारा उसने श्रीकृष्ण को मथुरा बुलाया था।
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